शनिवार, ८ नोव्हेंबर, २०१४

शिक्षकाचे पाठ निरीक्षण – नोंदी


शिक्षकाचे पाठ निरीक्षण – नोंदी
दिनांक :-     /    /
शिक्षकाचे नाव :- ------------------------------------------------------------------------------------------------------
शाळेचे नाव :- ---------------------------------------------------------------------------------------------------------
इयत्ता :- --------------- तुकडी :- ---------------- विषय :- ------------------ तासिका :- -------
घटक :- --------------------------------------------उपस्थिती :- -------------------------------
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अभ्यासक्रमाचे वार्षिक नियोजन  :                      आहे / नाही
घटक नियोजन :                                 आहे / नाही
दैनिक टाचण :                                   आहे / नाही
नियोजनाप्रमाणे   घटक चालू                         आहे / नाही
पाठयपुस्तकाचा वापर (शिक्षक / विद्यार्थी ):- ---------------------------------------------------------------------
पाठयमुद्दे  :- --------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------अध्यापन पध्दती :- ---------------------------------------------------------------------------------------------------
शिक्षकाचे विषय ज्ञान, पूर्वतयारी :- ---------------------------------------------------------------------------------
SaOक्षणिक साहित्याचे नाव व उपयोग :- -----------------------------------------------------------------
पाठात विद्यार्थ्याने सहभाग घेतला का ? :- ------------------------------------------------------------
घेतल्यास, कसा ? :- ---------------------------------------------------------------------------------------
फलक लेखन :- -------------- सुदंर अक्षर :- -----------------
लेखनातील शुध्दपणा :- ---------------स्वाध्याय :- -------------------------------------------------------------------------------------------------
उपक्रम :- --------------------------------------------------------------------------------------------------
प्रकल्प :- ----------------------------------------------------------------------------------------------------
शिक्षकाचे वर्ग नियंत्रण :- ----------------------------------------------------------------------------------
शिक्षकाची भाषा SaOली :- ------------------------------------------------------------------------------------
अनावश्यक हालचाली व शब्दप्रयोग :- --------------------------------------------------------------------
शिक्षकाला मार्गदर्शन सूचना :- ----------------------------------------------------------------------------
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शिक्षकाची स्वाक्षरी व दिनांक           पर्यवेक्षक स्वाक्षरी            मुख्याध्यापक स्वाक्षरी





शुक्रवार, १० जानेवारी, २०१४

सुविचार   माणसाची चौथी मूलभूत गरज म्हणजे पुस्तक.
बोधकथा                                                                        

एक गुरूंच्‍या घरी एक शिष्‍य मनोभावे गुरुंची सेवा करून शिक्षण घेत होता. त्‍याच्‍या या सेवेमुळे गुरु त्‍याच्‍यावर प्रसन्न होते. शिक्षण् पूर्ण झाल्‍यावर विद्यार्थी घरी जाण्‍यासाठी निघाला तेव्‍हा गुरुंकडे त्‍याने जाण्‍याची आज्ञा मागितली तेव्‍हा गुरुंनी त्‍याला आशीर्वाद म्‍हणून एक आरसा भेट दिला व सांगितले की, हा दिव्‍य आरसा (दर्पण) असून यात मानवी मनात चालणारे विचार प्रगट होऊन दिसतात. विद्यार्थी मोठा आनंदीत झाला. हा आरसा खरेच कार्य करतो की नाही याची शहानिशा करण्‍यासाठी त्‍याने लगेच आपल्‍या गुरुंसमोर हा आरसा धरला व गुरुंच्‍या मनात कोणते भाव आहेत, दुर्गुण आहेत हे पाहू लागला आणि गुरुंच्‍या समोर आरसा धरताच त्‍याच्‍या चेह-यावरचा रंग पार उडाला कारण तो आरसा गुरुंच्‍या अंतकरणात मोह, अहंकार, क्रोध आदि विकार दाखवित होता. त्‍याला याचे फारच दु:ख झाले की आपण ज्‍या गुरुची मनोभावे पूजा केली, ज्‍यांना पूर्ण ईश्र्वराचा दर्जा दिला त्‍यांच्‍या मनातही विकार आहेत, ते सुद्धा मानवी विकारापासून अजून सुटलेले नाहीत याचे त्‍याला वैषम्‍य वाटले. तो गुरुंना काहीच न बोलता तो आरसा घेवून गुरुकुलातून निघाला, रस्‍त्‍यात भेटणा-या प्रत्‍येकाच्‍या मनातील भाव पाहणे हे त्‍याचे कामच झाले होते. गावी परत जाताच त्‍याने आपल्‍या प्रत्‍येक परिचिताबरोबर हा प्रयोग करून पाहिला. त्‍याला प्रत्‍येकाच्‍या हृदयात कोणता ना कोणता दुर्गुण दिसून आला. शेवट त्‍याने आपल्‍या जन्‍मदात्‍या आई वडीलांच्‍या समोरही हा आरसा ठेवला. ते दोघेही पण त्‍यातून सुटले नाहीत. त्‍यांच्‍या हृदयात पण त्‍याला काही ना काही दुर्गुण दिसले. शेवटी या गोष्‍टीचा त्‍याला मनोमन राग आला व तो गुरुकुलातील गुरुंकडे धावला. गुरुंपाशी जाऊन मोठ्या विनम्रपणे तो म्‍हणाला,’’ गुरुदेव, मी आपण दिलेल्‍या या आरशातून प्रत्‍येकाच्‍या मनात, हृदयात, अंत:करणात डोकावून पाहिले आणि मला असे जाणवले की प्रत्‍येकाच्‍याच मनात काही ना काही विकार आहेच, काही ना काही दोष आहे. एखाद्याच्‍या मनात कमी तर कुणाच्‍या मनात जास्‍त असे विकार, दोष भरून राहिले आहेत. हे पाहून मी फार दु:खी झालो आहे, कृपया मला मार्गदर्शन करा.’’ गुरुंनी काहीच न बोलता तो आरसा फक्त त्‍याच्‍याकडे केला आणि काय आश्र्चर्य त्‍याला त्‍याच्‍या मनाच्‍या प्रत्‍येक कोप-यात राग, द्वेष, अहंकार, क्रोध, माया आदि दुर्गुण भरून राहिलेले दिसले. गुरुजी म्‍हणाले,’’ वत्‍सा, हा आरसा मी तुला तुझे दुर्गुण पाहून ते कमी करण्‍यासाठी दिला होता पण तू दुस-यांचे दुर्गुण पाहत बसलास आणि नको तितका वेळ खर्च केलास, अरे याच कालात जर तू जर स्‍वत:चे अवलोकन केले असते तर तुला तुझ्यातील दुर्गुण सुधारता आले असते. याच काळात तु एक असामान्‍य व्‍यक्ती झाला असता. मानवाची ही कमतरता आहे, कमजोरी आहे की तो दुस-यातील दुर्गुण पाहत बसतो आणि स्‍वत:ला सुधारण्‍याचा प्रयत्‍नही करत नाही. हेच या आरशातून मला तुला शिकवायचे होते. जे तुला शिकता आले नाही.’’ 

तात्‍पर्य – आपण नेहमीच दुस-या व्‍यक्तीचे दुर्गुण बघतो, त्‍यावर टीका करतो पण आपल्‍यातील दुर्गुणांवर आपले कधीच लक्ष जात नाही. कधीतरी जर आपण आत्‍मनिरीक्षण केले तर आपल्‍यालाही आपले दुर्गुण सापडतीलच.